गुरुवार

नैसर्गिक प्रेम : गुजरे जमाने की बात

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ब्रह्मा जी ने जब इस पृथ्वी की रचना की तो पहले उसकी नींव में आपसी भाईचारे और प्रेम का निर्धारण किया ताकि लोग मिल-जुलकर रहें और यहीं परंपरा सदियों से चली आ रही है। पहले का प्रेम एक नितांत निजी (विभिन्न प्रकार के प्रेम)अनुभव होता था, जो लब पर ना आकर उसके दिल और आंखों में संमा जाता था। चाहें वो पत्नी का पति के प्रति, भाई का बहन के प्रति, दोस्त का दोस्त के प्रति या किसी प्रेमी का प्रेमिका के प्रति,पर आज का प्रेम अपनी परिभाषा बदलता जा रहा है। पहले भी लोग एक दूसरे को पसंद करते थे,उसके लिए समर्पित रहते थे। पर दिल से। क्योंकि उनके उस प्यार से उन्हैं श्रेष्ठ अनुभूति एव सुगंधित अभिव्यक्ति का एहसास होता था
। वो नही चाहते थे कि लोग इस दिल के निजी जज्बात को जाने। और पति-पत्नी विवाह के पश्चात जीवन के अतिंम समय तक एक दूसरे पर समर्पित रहते थे, उनमें आत्मियता रहती थी। जिंदगी रूपी इस गाड़ी में जब वो बैठकर जीवन के उबड़खाबड़, झंझवातो, सुख-दुख के पहाड़ों को पार कर जब मंजिल तक पहुंचते थे, तो अपने सहज अनुभवों को सहेज कर रख लेते थे ताकि उनकी आने वाली पीढ़ी इससे सीख ले और जिस तरीके से आज तक वे एक दूसरे का हाथ थामें उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे हैं। उसे आत्मियता से अपने जीवन में उतारें। जीवन में अर्धगनी का हाथ थामकर अंत तक चलना ही एक नैसर्गिक शाश्वत प्रेम था जो जीवन का सच भी है । सदियां गुजरी, समय बदला, और हम आधुनिक युग से भी आगे बढ़ चुके। इसी बीच पाश्चातय शैली ने हमारे ही घर में सेंध लगानी शुरू कर दी। हाथ जोड़कर अभिवादन ने हाथ मिलाने की परंपरा शुरू कर दी.फिर हाथ मिलाने की जगह ली एक दूसरे के किस करने की…भाई समय बदल रहा है हम क्या कर सकते हैं, जो देखा हो रहा है, वही लिख रहे हैं। धीरे-धीरे शाश्वत प्रेम या नैसर्गिक प्रेम गुजरे जमाने की बाते हो गईं। जैसे-जैसे हमारा समाज आधुनिकता की चादर से भी आगे बढ़ता रहा वैसे-वैसे आपसी संबंध, लगाव, भाईचारे, और प्रेमिका-प्रेमी के प्यार की परिभाषा भी बदलती रही। पहले प्रेम निश्छल होता था और उस समय हमारे संस्कार पूर्वजों के दिये होते थे। क्योंकि हमारे पूर्वज और परिवार के लोग एक साथ रहकर सुख-दुख का बंटवारा करते थे। परिवार का मुखिया ही परिवार के सारे फैसले लेता था। अगर परिवार का कोई लड़का या लड़की किसी को पसंद भी करता था तो भी परिवार के सामने अपनी जुबां पर लाने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता था। इसका मतलब ये नहीं कि सब परिवार के बड़ों से डरते थे बल्कि परिवार में अनुशासन था एक दूसरे की भावनाओं की कद्र थी। एक प्यार की कड़ी पूरे परिवार को जोड़े रखती थी। बेटी या बेटे को अगर अपनी कोई पसंद बतानी भी होती थी उसे मां का सहारा लेना होता था। पर आज का युवा मंदिर में या कोर्ट में शादी कर लेता है और मां-बाप उसके लिए लड़की ही तलाशते रह जाते हैं। 21वीं सदी में तो प्रेम ने कई रूप बदले, नई-नई परिभाषा गठित की। विकास की यात्रा बढ़ती गई तो प्रेम की परिभाषा भी बदलती गई।आज प्रेम का एक नया रूप चलन में है, जिसे लिविंग रिलेशनशिप कहते हैं। कुछ दिन साथ रह कर देखते हैं .पटी तो पटी नहीं तो तुम अपने रास्ते हम अपने रास्ते। प्यार को जताने का एक तरीका आज डेटिंग भी चल पड़ा है प्रेमी अपनी प्रेमिका पर सब कुछ न्योछावर करने की कसम खाता है कि वो उससे शादी करेगा और मीठी-मीठी बातों में फंसा कर उसे डेटिंग पर ले जाता किसी नामी गिरामी रेस्टोरेंट में या किसी होटल में या किसी सूनसान पार्कों में। लड़की भी उसके झूठे झांसे में आ जाती है। बहला-फुसला कर मोबाइल पर उसकी आपत्तिजनक फोटो भी खींच लेता है। एक बार जब सिलसिला चला तो फिर शुरू हो जाता है, जिसका अंत एक ऐसी सड़क पर जाकर होता है। जहां सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा है। पूरे देश में ना जाने कितनी लड़कियां इन झूठे प्रेमियों के जाल में फंलकर आत्महत्या कर लेती हैं। आज युवा कालेज के लिए तो निकलते हैं पर वो पहुंच जाते हैं किसी रेस्टोरेंट में या किसी सूनसान जगह पर। मेरा मानना है टीवी पर दिखाये जाने वाले सीरियल से भी ये सिवा कहीं-कहीं प्रभावित होते हैं, उन्हें नहीं मालूम ये मात्र फंतासी ही है। पर कहीं ना कहीं टीवी हो या सहित्य ये भी हमारे जीवन में आईने का काम करते हैं। आज प्रेम इमेंल और एसएमएस के जरिये जाहिर किये जाते हैं । आज का युवा फ्लर्ट को ही प्यार समझता है और अधिकतर युवाओं का समय इन्हीं प्रेम गली में गुजरने लगता है। मैं नहीं कहता कि प्यार अपराध है, पर जिस तरीके से वे प्रेम की मर्यादा और उसकी सीमा को लांघ रहे हैं। वो आने वाले समय हमारे आने वाली पीढी के लिए काफी खतरनाक होगा। आज के कई युवाओं ने मर्यादाओं की सीमा तोड़ दी है। आज आप अपने परिवार के साथ किसी मॉल ,किसी रेस्टोरेंट या पार्क में जाइये तो मंजनू जोड़ों को देख शर्म से आंखे झुक जायेंगी। और यही वजह हैं कि नैसर्गिक, शाश्वत प्रेम की परीभाषा आज परिवारों से खत्म हो रही हैं। लोग अपना जीवन सिर्फ अकेले जीना चाहते हैं। मां-बाप के अरमानों का खून होते देख उन्हें जरा भी शर्म नहीं आती। पर मां बाप ठहरे इसे भी ईश्वर की नियति मान लेते हैं। हाई-फाई गाईज कानों में बुंदे पहने, गले में सोने की चेन पहने आपको हर डिस्कोथिक में धुंये के छल्ले उड़ते नजर आ जायेंगे। क्योंकि इन्हें लगता यही जीवन का अंतिम आन्नद है। ऐसे पबों में डांस करते करते अक्सर लड़के-लड़कियों मदहोशी की हालत में वर्जनायें टूटते देर नहीं लगती। ये नहीं समझ सकते कि प्यार एक जज्बा है, एक इबादत है। हो सकता है आप जिससे करते हो या पंसद करते हो वो आपको ना प्यार करता हो। पर अगर आप उसे पसंद करते हैं, हमेशा उसके लिए एक निश्चल प्रेम की पराकाष्ठा को दिल में रखते हैं, तो हमेशा चाहेंगे वो तरक्की करे। प्यार एक एहसास है, ये संयोग भी है वियोग भी है, हर कोई प्यार को अपनाना चाहता है, पर इसकी कुछ सीमायें भी होती हैं, कुछ मर्यादायें होती हैं पर आधुनिक प्रेम की रफ्तार इतनी तेज है कि आगे ये कहां तक कि यात्रा तय करेगा कहा नहीं जा सकता.हो सकता है मेरी सोच गलत हो पर प्रेम और आर्कषण के फर्क को लोगों को समझना ही होगा क्योंकि ये हमारा समाज है, हमारी संस्कृति ही ऐसी धरोहर है, जो आने वाली पीढ़ी के लिए एक सही मंज़िल तय करेगी। शायद यही वह वो पूंजी है जो अपने बच्चों को हम दे कर जायेंगे। सच कहे तो प्रेम तो दान का प्रतिदान है, जिसे पाने वालों को पहचान नहीं एहसास तो दूर की बात है।
 मनोज जैसवाल 

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10 टिप्‍पणियां

  1. सुदरतम रचना बधाई मनोज जी

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  2. कमेन्ट के लिए आभार शिवम् जी.

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  3. बहुत दिनों बाद इस आपके ब्लॉग बेहद शानदार लेख देखा अपने इस ब्लॉग पर भी पोस्ट किया कीजिये मनोज जी.थैंक्स.

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  4. आपने सही राय दी है मोहित जी, पिछले काफी समय अपने तकनीकी ब्लॉग पर ही अधिक ध्यान दे रहा था.राय के लिए आभार.

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  5. शानदार आलेख सर पर अब जमाना चेंज हो गया है

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  6. ठीक लिखा आपने यह सब एकल परिबारों की वजह से हो रहा है

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  7. बेहद सुन्दर आलेख ऐसे लेख ही समाज में परिवर्तन कर सकते है आभार

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